चेक बाउंस मामलों में डिजिटल नोटिस को मंजूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला.......

 चेक बाउंस मामलों में डिजिटल नोटिस को मंजूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला.......

संवाददाता आकाश तिवारी.........

प्रयागराज ......


देश की न्यायिक प्रणाली ने एक और महत्वपूर्ण कदम डिजिटल युग की ओर बढ़ाते हुए चेक बाउंस मामलों में एक क्रांतिकारी बदलाव किया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने एक फैसले में कहा है कि अब चेक अनादरण (चेक बाउंस) के मामलों में ईमेल और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भेजे गए नोटिस भी पूरी तरह से कानूनी रूप से मान्य माने जाएंगे।

यह फैसला राजेंद्र यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में सुनाया गया, जिसमें न्यायालय ने परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act) की धारा 138 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 13 का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया कि कानून के अनुसार “लिखित” नोटिस की आवश्यकता तो है, लेकिन उसे डाक द्वारा भेजा जाए, यह आवश्यक नहीं है।




डिजिटल इंडिया की दिशा में मजबूत कदम.......

अब तक की प्रचलित व्यवस्था के अनुसार, ऐसे मामलों में नोटिस केवल रजिस्टर्ड डाक या स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजा जाना आवश्यक माना जाता था। यह प्रक्रिया न सिर्फ समय लेने वाली थी, बल्कि अक्सर डाक सेवा की खामियों के चलते न्याय प्राप्ति में अनावश्यक देरी और तकनीकी दिक्कतें आती थीं।


न्यायालय ने इन पुराने ढांचागत नियमों को आधुनिक तकनीक के आलोक में पुनः व्याख्यायित किया और कहा कि अगर कोई नोटिस इलेक्ट्रॉनिक रूप में भेजा गया है, और भेजे जाने तथा प्राप्त होने के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं, तो वह नोटिस पूरी तरह वैध माना जाएगा।

अदालती टिप्पणी और कानूनी व्याख्या.......

फैसला सुनाते हुए अदालत ने यह भी कहा कि, "कानून का उद्देश्य पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाना है, न कि तकनीकी अड़चनों में उलझाना। यदि डिजिटल माध्यमों से नोटिस भेजा गया है और उसका रिकॉर्ड उपलब्ध है, तो उसे नकारा नहीं जा सकता।"


यह निर्णय न सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया को सरल और तेज बनाएगा, बल्कि डिजिटल इंडिया की सोच को भी व्यवहारिक धरातल पर उतारने में मदद करेगा। इससे खास तौर पर उन मामलों में बड़ी राहत मिलेगी, जहां आरोपी जानबूझकर नोटिस रिसीव नहीं करता या डाक सेवा में देरी होती है।


न्याय व्यवस्था में तकनीक का स्वागत योग्य समावेश

विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला आने वाले समय में देशभर की निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शक साबित होगा। इससे न केवल केसों की संख्या नियंत्रित होगी बल्कि समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करना भी संभव होगा।


साथ ही, यह निर्णय एक प्रगतिशील और तकनीक-समर्थ न्याय व्यवस्था की ओर संकेत करता है, जो आम जनता को त्वरित और प्रभावी न्याय दिलाने की दिशा में लगातार अग्रसर है।


निष्कर्ष रूप में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह निर्णय देश की कानूनी व्यवस्था में डिजिटल क्रांति के एक नए अध्याय की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। यह फैसला उन लाखों पीड़ितों के लिए आशा की नई किरण है जो चेक बाउंस जैसे मामलों में वर्षों से न्याय का इंतजार कर रहे हैं।

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