पुलिस थानों में बंद पड़े CCTV कैमरे, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से मांगा जवाब....
पुलिस थानों में बंद पड़े CCTV कैमरे, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से मांगा जवाब.......
संवाददाता: आकाश तिवारी.........
देश के विभिन्न पुलिस थानों में लगे CCTV कैमरों की बदहाल स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। उच्चतम न्यायालय ने पाया है कि कई पुलिस थानों में या तो कैमरे बंद पड़े हैं, खराब हालत में हैं या फिर अब तक कैमरे लगाए ही नहीं गए हैं। कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए सभी राज्य सरकारों से इस पर जवाब मांगा है।
‘परमवीर सिंह बनाम बलजीत सिंह’ केस का हवाला
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने पहले ही परमवीर सिंह बनाम बलजीत सिंह केस में एक ऐतिहासिक आदेश जारी करते हुए देश के हर पुलिस थाने में CCTV कैमरे लगाने का निर्देश दिया था। इस आदेश का उद्देश्य था कि हिरासत में होने वाली किसी भी प्रकार की मारपीट, उत्पीड़न या मानवाधिकार उल्लंघन की निगरानी सुनिश्चित की जा सके।
हालांकि, अब अदालत के सामने यह तथ्य उजागर हुआ है कि कई राज्यों ने इस आदेश का पालन नहीं किया है। कई थानों में कैमरे अब तक नहीं लगे हैं, जबकि जिन जगहों पर लगाए गए हैं, वहां वे या तो खराब हो चुके हैं या निष्क्रिय पड़े हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
न्यायालय ने इस मामले में गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा,
“जब सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि सभी पुलिस स्टेशनों में CCTV कैमरे लगाए जाएं, तो फिर यह लापरवाही क्यों? क्या राज्य सरकारें कानून के शासन को हल्के में ले रही हैं?”
कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों से एक निर्धारित समयसीमा के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, जिसमें यह जानकारी देनी होगी कि:
राज्य में कितने पुलिस थाने हैं?
उनमें से कितनों में CCTV कैमरे लगे हैं?
कितने कैमरे चालू स्थिति में हैं?
कहां-कहां कैमरे नहीं लगे या बंद पड़े हैं?
और अब तक की प्रगति क्या हुई है?
मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में अहम कदम
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में अहम माना जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में कई मामले सामने आए हैं, जहां थानों के अंदर पूछताछ या हिरासत में रखे गए लोगों के साथ मारपीट, मानसिक उत्पीड़न, या अन्य मानवाधिकार हनन के आरोप लगे हैं। इन मामलों में कई बार पर्याप्त सबूत न होने की वजह से दोषियों को सजा नहीं मिल पाई।
CCTV कैमरे न केवल पारदर्शिता लाते हैं, बल्कि पुलिसकर्मियों और आम नागरिक—दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
क्या कहती है सरकारें?
इस मामले में अब सभी राज्यों को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। माना जा रहा है कि कुछ राज्य वित्तीय तंगी या प्रशासनिक बाधाओं का हवाला दे सकते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस मामले में किसी भी तरह की ढिलाई को स्वीकार करने के मूड में नहीं दिख रहा है।
आगे की कार्रवाई पर नजर
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब सभी राज्यों की निगरानी और जवाबदेही तय होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि किन राज्यों ने न्यायालय के आदेशों का पालन किया और किन्होंने लापरवाही दिखाई।